भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर सी रंगराजन ने सोमवार (6 फरवरी) को कहा कि बैंक गैर निष्पादित आस्तियों (एनपीए) यानी फंसे कर्ज को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी से बच नहीं सकते हैं। आम बजट-2017-18 पर परिचर्चा में भाग लेते हुए रंगराजन ने कहा कि नई करेंसी पूरी तरह तंत्र में आने के बाद हालांकि, नोटबंदी का प्रतिकूल प्रभाव समाप्त हो जायेगा, लेकिन कुछ प्रभाव ऐसे भी होंगे जो दूर नहीं हो सकते। रीयल एस्टेट जैसे क्षेत्रों को अपने कारोबारी मॉडल पर नए सिरे से विचार करना होगा। परिचर्चा का आयोजन आईसीएफएआई फांउडेशन फॉर हायर एजूकेशन ने किया था। उन्होंने कहा, ‘निश्चित रूप से बैंकिंग प्रणाली दबाव में है। इस समस्या का निदान सिर्फ पूंजीकरण के जरिये ही किया जा सकता है। यहां यह याद रखने की जरूरत है कि पुरानी बासेल-एक प्रणाली में भी जोखिम वाली संपत्तियों के आठ प्रतिशत तक पूंजी का प्रावधान रखा गया था। ऐसे में 10,000 करोड़ रुपए की पूंजी की तुलना एक या दो लाख करोड़ रुपए से नहीं होनी चाहिए।’

वर्ष 2017-18 के दौरान बैंकों में इतनी ही राशि डालने का प्रस्ताव किया गया है। रंगराजन ने कहा कि जो पूंजी उपलब्ध कराई जा रही है वह पर्याप्त नहीं है। ‘मुझे लगता है कि इससे बैंक अपने संपत्ति पोर्टफोलियो में डूबे कर्ज की जिम्मेदारी से बच नहीं सकते हैं।’ उन्होंने कहा कि सबसे अच्छा कदम यह होगा कि वे जितना ज्यादा हो सके उतनी गैर निष्पादित आस्तियों की वसूली करें। इससे पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली के बजट भाषण पर अपनी प्रतिक्रिया में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के पूर्व चेयरमैन रंगराजन ने कहा था कि बजट की मंशा सही है। मंशा की तरह कार्रवाई भी होनी चाहिए। रंगराजन ने कहा कि बजट में राजस्व अनुमान बहुत अधिक महत्वाकांक्षी नहीं है ऐसे में यह हासिल हो जाएगा।