अप्प दीपो भव

दीपावली अंधकार पर प्रकाश की जीत का पर्व है। अंधकार अवसाद, अशिक्षा, अज्ञान, गरीबी, भुखमरी, बेकारी, वैमनस्य और निराशा का प्रतीक है। प्रकाश खुशहाली, उत्साह, उमंग और उल्लास का प्रतीक है। अंधकार और प्रकाश के बीच संघर्ष हमेशा चलता रहा है लेकिन सत्यमेव जयते की तरह जीत हमेशा प्रकाश की ही हुई है। अंधकार से प्रकाश का पथ मुश्किलोंं भरा अवश्य है लेकिन हमेशा सुकून देने वाला रहा है। संघर्ष से मिली सफलता और झंझावातों के बीच रोशन दीप की अपनी महत्ता है। जब बात उजाले की चलती है तो सबसे पहले ध्यान मिट्टी के नन्हे दीपक की तरफ जाता है। जब रोशनी के सारे युगीन प्रतिमान दगा दे जाते हैं तब विश्वास का प्रतीक बन कर उभरता है दीपक। दीपावली का दीप हमें याद दिलाता है कि इतनी हसीन और रंगीन दुनिया बनाने वाले विधाता को यह मिट्टी का पुतला कहलाने वाला मनुष्य भला क्या सौगात दे सकता था, तो उसने मिट्टी का दीपक बनाया। दीपक छोटा जरूर है लेकिन उसका संघर्ष बड़ा और पूर्णता का प्रतीक है।

रात कितनी भी काली अंधेरी हो उसकी सुबह होनी ही है। रात से सुबह तक के अंधकार भरे सफर का सबसे स्थायी और विश्वसनीय साथी है दीपक। वह अंधकार से तब तक संघर्ष करता रहता है जब तक कि भोर की पहली किरण आकर द्वार पर उजाले की दस्तक नहीं दे देती। जब भी अंधकार के खिलाफ उजाले का दीप प्रज्ज्वलित करने की बात हो तो इसकी शुरुआत अपने आप से करनी चाहिए। वैसे भी कहा गया है कि ‘चैरिटी बिगेन एट होम’। समाज सेवा की शुरुआत अपने आप से होनी चाहिए। महात्मा बुद्ध ने भी कहा है ‘अप्प दीपो भव:’। अर्थात अपने दीप आप स्वयं बनें। अपने मन के अंधकार को मिटाए बिना बाहर दीप जलाने का कोई मतलब नहीं है। अगर हर व्यक्ति ने अपने अंदर के मलीनता रूपी अंधकार को दूर कर लिया तो बाहर निर्मल प्रकाश स्वयंमेव फैल जाएगा। इसलिए अगर देश और समाज में समृद्धि, खुशहाली, प्रेम, सद््भाव की चाह मन में हो तो इस दीपावली दिल की मुंडेर पर स्नेह, सौहार्द, समर्पण और आत्मसंयम का दीप अवश्य रोशन करें।
’देवेंद्र जोशी, उज्जैन

खतरे की घंटी
प्रदूषण भारत में कोई नई समस्या नहीं है लेकिन हाल के वर्षों में इसमें जिस कदर सघनता आई है, उससे नीतिगत कार्रवाई करने की जरूरत आन पड़ी है। भारत के राजनेता और नागरिक, दोनों ही अब इस चुनौती की तरफ से मुंह नहीं फेर सकते। चीन में बढ़ते प्रदूषण को खतरे की घंटी करार दे दिया गया है। जीवन-स्तर ऊंचा हो, देश का आर्थिक विकास हो लेकिन इस तरह कि पर्यावरण को नुकसान न होने पाए। सार्वजनिक स्वास्थ्य पर विकास भारी न पड़ जाए। अगर हमारे यहां सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण होगा तो हमारी प्रतिष्ठा वह नहीं रह पाएगी जिसके बल पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आता है।

ट्रकों से होने वाले प्रदूषण में कमी लाने, कारों का उपयोग घटाने और यातायात के सार्वजनिक साधनों का इस्तेमाल बढ़ाने के प्रयास किया जाना कोई आसान काम नहीं है न ही यह एकमात्र विकल्प है। लेकिन इन्हें नहीं आजमाया जाना हमारी बड़ी लापरवाही होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पटाखों की बिक्री 1 नवंबर, 2017 से दोबारा शुरू हो सकेगी। इस फैसले से सुप्रीम कोर्ट देखना चाहता है कि पटाखों के कारण प्रदूषण पर कितना असर पड़ता है। प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए यह भी सही कदम है पर इसे हर राज्य में लागू करना होगा ताकि वहां की स्थिति भी सुधर सके।
’ज्योति झा, वाशी, नवी मुंबई</p>