आज जिस शख्सियत की बात हम कर रहे हैं उनके बारे में आपको बता दें कि उन्होंने गरीबी को करीब से देखा और मुश्किल हालात से निकलकर बड़े अफसर बने। उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के एक गांव के रहने वाले वीर प्रताप सिंह राघव का स्कूल गांव से 5 किलोमीटर दूर था। पढ़ाई करने के लिए वो हर रोज यह दूरी तय किया करते थे। पुल ना होने की वजह से कई बार उन्हें नदी पार कर स्कूल का रास्ता तय करना पड़ता था। वीर प्रताप सिंह राघव के पिता पेशे से किसान हैं। वीर प्रताप सिंह ने प्राथमिक शिक्षा आर्य समाज स्कूल करौरा और कक्षा छह से हाईस्कूल तक की शिक्षा सूरजभान सरस्वती विद्या मंदिर शिकारपुर से हासिल की। उच्च शिक्षा की बात करें तो उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से 2015 में बीटेक पास किया।

वीर प्रताप सिंह के घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। उनके बड़े भाई भी सिविल सर्विसेज की तैयारी करना चाहते थे लेकिन पैसों की कमी की वजह से वो ऐसा नहीं कर पाए। आखिरकार उन्होंने सीआऱपीएफ की नौकरी करनी पड़ी। बड़े भाई और पिता ने मिलकर ठाना था कि वीर प्रताप सिंह की पढ़ाई-लिखाई में किसी तरह की कमी नहीं रखी जाएगी।

बताया जाता है कि उनके पिताजी ने तीन प्रतिशत महीने के ब्याज पर पैसा उधार लिया और बेटे को यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी करने के लिए कहा। वीर प्रताप सिंह ने भी अपने पिता और भाई के सहयोग का मान रखा और तीसरी बार में यूपीएससी की यह कठिन परीक्षा पास कर ली। साल 2018 में वीर प्रताप सिंह राघव ने दलतपुर गांव का नाम रौशन कर दिया।

वीर प्रताप सिंह राघव ने यूपीएससी की सिविल सर्विसेज की परीक्षा तीसरे प्रयास में पास की थी। तीसरे प्रयास में उन्हें 92 वीं रैंक हासिल हुई थी। इस रैंक को पाने के बाद वीर प्रताप ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर परीक्षा की तैयारी करने वालों के लिए एक मोटिवेशनल पोस्ट किया था।

इसमें उन्होंने अपने संघर्ष की कहानी बताई थी और कहा था कि यह संघर्ष रंग लाया है, लेकिन इसके पीछे बहुत मेहनत और दृढ संकल्प काम आया। तमाम मुसीबतों का जिक्र करते हुए उन्होंने प्रतियोगियों को प्रेरित किया है, जो खराब माली हालत के चलते संसाधनों के अभाव में कई बार हताश हो जाते हैं।