दिल्ली हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि यदि पति-पत्नी आपसी सहमति से तलाक को राजी हो जाते हैं और फिर इनमें से कोई भी अपनी तलाक से मुकर जाता है तो इसे मानसिक क्रूरता माना जाएगा। जस्टिस प्रदीप नंदराजोग और योगेश खन्ना की बेंच ने कहा कि बिना किसी कारण के या अचानक तलाक की सहमति वापस ले लेने से साथी को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। कोर्ट ने यह फैसला एक महिला को मानसिक क्रूरता के आधार पर तलाक देते हुए सुनाया।
बेंच ने पाया कि एक तलाक केस में पति ने अचानक तलाक की सहमति को वापस ले लिया। वह भी तब जबकि पत्नी समझौते की सभी शर्तों को मानने के लिए तैयार थी। इससे पत्नी को काफी मुश्किल हुई और कोर्ट के मुताबिक मानसिक क्रूरता सहनी पड़ी। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पति द्वारा लिखे गए उसे माफीनामे समान पत्र को भी संज्ञान में लिया जो पति ने दिल्ली पुलिस की क्राइम अगेंस्ट वुमेन सेल (CAW) को लिखा था। इस पत्र में पति ने पत्नी के साथ मारपीट करने को लेकर माफी मांगी थी।
विवाहेतर संबंध नहीं है क्रूरता:
गौरतलब है कि करीब एक महीना पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश जारी कर कहा था कि पति के विवाहेतर संबंधों को लेकर पत्नी के संदेह को हमेशा मानसिक क्रूरता नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने कहा था, “विवाहेतर संबंधों को अवैध या अनैतिक माना जा सकता है। लेकिन इसे पत्नी के प्रति क्रूरता मानकर पति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि इसे आपराधिक मामला करार देने के लिए कुछ और परिस्थितियां भी जरूरी होती हैं।”

