सोमवार (17 जुलाई) को देश के अगले राष्ट्रपति के लिए चुनाव होने जा रहा है। चुनावी मैदान में एनडीए को रामनाथ कोविंद और कांग्रेस के नेतृत्व में 18 विपक्षी दलों ने मीरा कुमार को उम्मीदवार बनाया है। राष्ट्रपति चुनाव में सांसद और विधायक वोट देते हैं। वोटों की गिनती इलेक्टोरल कॉलेज के वोटों के आधार पर होती है। इलेक्टोरल कॉलेज में प्रातिनिधिक वोटों के आधार पर मतगणना होती है। अभी तक के चुनावी रुझानों से करीब 70 प्रतिशत इलेक्टोरल वोट रामनाथ कोविंद को मिलने की उम्मीद है। लेकिन राष्ट्रपति चुनाव में कोई भी राजनीतिक पार्टी व्हिप जारी करके अपने विधायकों और सांसदों को अपने प्रत्याशी को वोट देने के लिए बाध्य नहीं कर सकतीं। ऐसी व्यवस्था संविधान निर्माताओं ने इसलिए की ताकि राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति का चुनाव दलगत भावनाओं से ऊपर उठकर हो। ऐसे में इस बात की आशंकाएं बढ़ गईं कि कई दलों के नेता अपनी पार्टी के उम्मीदवार के बजाय विपक्षी उम्मीदवार को वोट दे सकते हैं।
जो नेता राष्ट्रपति चुनाव में पाला बदल सकते हैं कि उनमें सबसे आगे उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी मानी जा रही है। अखिलेश यादव और उनके पिता मुलायम सिंह यादव के बीच मतभेद की सीधा फायदा बीजेपी को मिल सकता है। जहां अखिलेश यादव मीरा कुमार के समर्थन में हैं। खबरों के अनुसार रामनाथ कोविंद को उम्मीदवार बनाने के बाद वरिष्ठ बीजेपी नेताओं मुलायम सिंह यादव से बात की थी। मुलायम खेमे के शिवपाल यादव ने 14 जुलाई को वाराणसी में रामनाथ कोविंद को समर्थन देने की घोषणा की। बीजेपी के एक नेता ने इंडियन एक्सप्रेस के लालमनी वर्मा को बताया, “कुछ ऐसे विधायक हैं जो राजनीति में अपने उज्जवल भविष्य के लिए सत्ताधारी पार्टी का समर्थन करने को तैयार हैं। ऐसे विधायक एनडीए के उम्मीदवार को वोट दे सकते हैं।”
अगर राज्यवार तरीके से देखें तो मीरा कुमार को सबसे ज्यादा वोट पश्चिम बंगाल से मिलने की उम्मीद है क्योंकि वहां की मुख्य सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस और मुख्य विपक्षी पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) दोनों ही मीरा कुमार को समर्थन में हैं। पश्चिम बंगाल में 295 विधायक और 42 लोक सभा सांसद हैं। इनमें से बीजेपी के तीन और गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के तीन विधायक बीजेपी के समर्थन में हैं। बीजेपी के दो सांसद भी रामनाथ कोविंद को वोट देंगे। यानी राज्य के 288 विधायक और 40 सांसद मीरा कुमार को वोट दे सकते हैं।
तो क्या क्रॉस वोटिंग की आशंका केवल विपक्षी दलों को है? बिल्कुल नहीं। बीजेपी को भी अंदर ही अंदर इस बात का भय जरूर होगा कि उसके कुछ सांसद और विधायक विपक्षी उम्मीदवार को वोट न दे दें। खासकर ऐसे सांसद और विधायक जो पार्टी से नाराज हैं। शत्रुघ्न सिन्हा और कीर्ति झा आजाद जैसे सांसद अगर बीजेपी के उम्मीदवार के बजाय मीरा कुमार को वोट दे दें तो किसी को हैरत नहीं होगी। राष्ट्रपति चुनाव में सत्ताधारी पार्टी न ही ये पता कर सकती है कि किसने किसको वोट दिया और न ही अपने उम्मीदवार को वोट देने को मजबूर कर सकती है। ऐसे में शत्रु जैसे नेता “आत्मा की आवाज” सुन सकते हैं। अभी परसों ही शत्रुघ्न ने बीजेपी से अलग लाइन लेते हुए बिहार के उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के इस्तीफे की मांग का विरोध कर दिया।
क्रॉस वोटिंग की आशंका आम आदमी पार्टी को भी सता रही होगी। पार्टी के वरिष्ठ नेता और कुछ दिनों पहले तक पंजाब विधान सभा में पार्टी के विधायक दल के नेता एचएस फुल्का ने साफ कर दिया है कि वो मीरा कुमार को वोट नहीं देंगे। फुल्का ने कहा है कि कांग्रेस ने 1984 के दंगे को आरोपियों जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार को महत्वपूर्ण पदों पर बैठाए रही है इसलिए वो उसके उम्मीदवार को वो नहीं देंगे। कोई बड़ी बात नहीं होगी पंजाब और दिल्ली के कुछ और आप विधायक निजी या स्थानीय समीकरणों की वजह से मीरा कुमार के बजाय रामनाथ कोविंद को वोट दे दें।



