Haridwar Kumbh Mela: इस बार कुंभ मेला हरिद्वार में लगने जा रहा है। वैसे तो कुंभ मेले की शुरुआत 1 अप्रैल से होगी लेकिन इसका पहला शाही स्नान 11 मार्च को महाशिवरात्रि के दिन होने जा रहा है। कुंभ मेले का आयोजन हर 3 साल में प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में से किसी एक स्थान पर होता है। इस तरह से देखा जाए तो हर 12 साल में किसी एक जगह पर कुंभ मेला फिर से लगता है। यानी कि, अगर पहला कुंभ हरिद्वार में होता है तो इसके 3 साल बाद दूसरा कुंभ प्रयाग में, फिर तीसरा कुंभ 3 साल के बाद उज्जैन में और फिर चौथा कुंभ फिर 3 साल बाद नासिक में होता है और यह कड़ी इसी तरह चलती रहती है।
कब लगता है कुंभ मेला? सूर्य जब मेष राशि में और देवगुरु बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं तब हरिद्वार में कुंभ मेला लगता है। लेकिन इस बार हरिद्वार में 11वें साल यानी 1 साल पहले ही कुंभ मेला लग रहा है क्योंकि अगले साल यानी 2022 में गुरु कुंभ राशि में नहीं होंगे। मान्यता है कि कुभ की शुरुआत समुद्र मंथन से ही हो गई थी।
कुंभ क्यों लगता है? भारत में कुंभ मेले को आस्था और विश्वास का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। इस पर्व को मनाने के लिए देश ही नहीं विदेशों से भी लोग आते हैं और पवित्र नदियों में आकर आस्था की डुबकी लगाते हैं। कुंभ मेले से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार इसकी शुरुआत समुद्र मंथन से हुई थी। समुद्र मंथन के दौरान उत्पन्न होने वाले 14 रत्नों को देवताओं और राक्षसों के बीच में बांटने का निर्णय हुआ। इन रत्नों में सबसे मूल्यवान था अमृत। जैसे ही समुद्र से अमृत कलश निकला तो देवताओं और दानवों में युद्ध छिड़ गया।
माना जाता है कि देव और दानवों के बीच ये युद्ध 12 दिनों तक चलता रहा। कहा जाता है कि देवताओं का एक दिन पृथ्वी की गणना के अनुसार 1 साल के बराबर होता है। यानी पृथ्वीवासियों के अनुसार ये युद्ध 12 वर्षों तक चला। इस बीच जिन चार स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरीं वहां-वहां पर कुंभ का आयोजन किया जाता है। चूंकि इस संघर्ष की अवधि 12 वर्ष थी, इसलिए हर स्थान पर 12 वर्ष के बाद ही कुंभ मेला लगता है।

