कन्या संक्रांति के दिन हर साल विश्वकर्मा पूजा होती है। इस दिन पहले अविष्कारक और इंजीनियर माने जाने वाले भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था जिस कारण इसे विश्वकर्मा जयंती के नाम से जाना जाता है। 17 सितंबर को ये जयंती मनाई जायेगी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विश्वकर्मा को निर्माण एवं सृजन का देवता माना जाता है। इसलिए भगवान विश्वकर्मा की पूजा के दिन फैक्ट्रियों, ऑफिस और उद्योगों में लगी हुई मशीनों की पूजा की जाती है।
भगवान विश्वकर्मा की आरती यहां देखिए
विश्वकर्मा पूजा 2019 शुभ मुहूर्त (Vishwakarma Puja 2019 Muhurat) : संक्रांति समय 07:02 सुबह
विश्वकर्मा पूजा महत्व (Vishwakarma Puja Significance) : विश्वकर्मा पूजा को लेकर कारीगरों की मान्यता है कि इनकी पूजा करने से काम में प्रयोग किये जाने वाली मशीनें जल्दी खराब नहीं होती और अच्छे से काम करती हैं। इसलिए इस दिन सभी काम रोककर मशीनों और औजारों की साफ-सफाई की जाती है और भगवान विश्वकर्मा की पूरी श्रद्धा के साथ पूजा की जाती है। जानिए विश्वकर्मा पूजा से संबंधित सभी जानकारी यहां…


विश्वकर्मा जयंती के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर तैयार हो जाएं। पूजा स्थल पर भगवान विश्वकर्मा की फोटो या मूर्ति स्थापित करें। पीले या फिर सफेद फूलों की माला भगवान विश्वकर्मा को पहनाएं। उनके समक्ष सुगंधित धूप और दीपक भी जलाएं। अब अपने सभी औजारों की एक-एक करके पूजा करें। भगवान विश्वकर्मा को पंचमेवा प्रसाद का भोग लगाएं। इसके बाद हाथ में फूल और अक्षत लेकर विश्वकर्मा भगवान का ध्यान करें।
मान्यता है कि स्वर्ग के राजा इंद्र का अस्त्र वज्र का निर्माण विश्वकर्मा ने ही किया था। जगत के निर्माण के लिए विश्वकर्मा ने ब्रह्मा की सहायता की और संसार की रूप रेखा का नक्शा भी तैयार किया था। माता पार्वती के कहने पर विश्वकर्मा ने ही सोने की लंका का निर्माण किया था।साथ ही भगवान श्रीकृष्ण के आदेश पर विश्वकर्मा ने द्वारका नगरी का निर्माण किया था। शिव जी के त्रिशूल भी इनके द्वारा ही बनाया गया था।
दोपहर 3 बजे से लग जायेगा राहुकाल जो 4 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। इसलिए विश्वकर्मा पूजा इससे पहले या बाद में करें संपन्न। राहुकाल अशुभ समय है इस दौरान कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता है।
ओम पृथिव्यै नमः ओम अनंतम नमः ओम कूमयि नमः ओम श्री सृष्टतनया सर्वसिद्धया विश्वकर्माया नमो नमः
भगवान विश्वकर्मा की पूजा उत्तर प्रदेश, दिल्ली, बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक आदि राज्यों में मुख्य रूप से की जाती है। कारीगरों की मान्यता है कि विश्वकर्मा की पूजा करने से सभी मशीनें जल्दी खराब नहीं होती और अच्छे से काम करती हैं। इस दिन सभी काम रोककर मशीनों और औजारों की अच्छे से साफ-सफाई कर उनकी पूजा की जाती है।
शाम 3 बजकर से 4 बजकर 30 मिनट तक राहुकाल रहेगा जिसमें पूजा नहीं की जा सकेगी। 1 बजकर 30 मिनट तक गुलिक काल है। इन समयों को छोड़कर पूरे दिन विश्वकर्मा पूजा की जा सकेगी।
भगवान विश्वकर्मा के जन्मदिन को विश्वकर्मा पूजा, विश्वकर्मा दिवस या विश्वकर्मा जयंती के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विश्वकर्मा ने सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के सातवें धर्मपुत्र के रूप में जन्म लिया था। भगवान विश्वकर्मा को 'देवताओं का शिल्पकार', 'वास्तुशास्त्र का देवता', 'प्रथम इंजीनियर', 'देवताओं का इंजीनियर' और 'मशीन का देवता' कहा जाता है। विष्णु पुराण में विश्वकर्मा जी को को 'देव बढ़ई' कहा गया है।
विश्वकर्मा पूजा घरों, दफ्तरों और कारखानों में की जाती है। जो लोग इंजीनियरिंग, आर्किटेक्चर, चित्रकारी, वेल्डिंग और मशीनों के काम से जुड़े हुए हैं वे खास तौर से इस दिन को बड़े ही उत्साह के साथ मनाते हैं। इस दिन मशीनों, दफ्तरों और कारखानों की अच्छे से साफ सफाई की जाती है। साथ ही भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति की स्थापना की जाती है। घरों में लोग अपनी गाड़ियों, कंम्प्यूटर, लैपटॉप व अन्य मशीनों की पूजा करते हैं तो मंदिर में विश्वकर्मा भगवान की मूर्ति या फोटो की विधिवत पूजा करने के बाद आरती की जाती है।
भगवान विश्वकर्मा को निर्माण का देवता माना जाता है। मान्यता है कि उन्होंने देवताओं के लिए भव्य महलों, हथियारों और सिंघासनों का निर्माण किया था। विश्वकर्मा ने एक से बढ़कर एक भवन बनाए। मान्यता है कि उन्होंने रावण की लंका, कृष्ण नगरी द्वारिका, पांडवों के लिए इंद्रप्रस्थ नगरी और हस्तिनापुर का निर्माण किया। माना जाता है कि उन्होंने उड़ीसा स्थित जगन्नाथ मंदिर के लिए भगवान जगन्नाथ सहित, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्ति का निर्माण अपने हाथों से किया था।
विश्वकर्मा की पूजा अगर आप मूर्ति बैठाकर या उनकी मूर्ति रखकर करते हैं तो उनके सामने फल, मिठाई, चंदन, अक्षत, रोली, कुमकुम, धूप, बत्ती के अलावे घर में जो भी औजार मौजूद हो उन्हें भी साफ करके जिन्हें पानी से नहीं धो सकते उन्हें साफ कपड़े से पोछकर पूजा स्थान पर रखें। इस दिन हो सके तो औजार का प्रयोग ना करें।
विश्वकर्मा पूजा के दिन औजारों और मशीनों की पूजा करने के बाद हवन करने का विधान है। इसके बाद प्रसाद वितरण किया जाना चाहिए। मान्यता है कि विधि-विधान से पूजा करने से देवशिल्पी विश्वकर्मा की कृपा बरसती है। जिससे व्यापार में लाभ मिलता है।
भगवान विश्वकर्मा की पूजा विशेष विधि-विधान से की जाती है। इस दिन यज्ञकर्ता पत्नी सहित पूजा स्थान में बैठे। इसके बाद विष्णु भगवान का ध्यान करे। इसके उपरान्त हाथ में पुष्प, अक्षत लेकर मंत्र पढ़े और चारों ओर अक्षत छिड़के और अपने हाथ में रक्षासूत्र बांधे और अपनी पत्नी को भी बांधे। फूल जलपात्र में छोड़ दें। फिर भगवान विश्वकर्मा का मन से ध्यान करें। भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति के समक्ष दीप जलायें, जल के साथ पुष्प एवं सुपारी लेकर संकल्प करें। शुद्ध भूमि पर अष्टदल कमल बनाकर उस पर जल डालें। अब शुद्ध भूमि पर अष्टदल कमल बनाएं। उस पर जल डालें। इसके बाद पंचपल्लव, सप्त मृन्तिका, सुपारी, दक्षिणा कलश में डालकर कपड़े से कलश की तरफ अक्षत चढ़ाएं। चावल से भरा पात्र समर्पित कर विश्वकर्मा भगवान की मूर्ति की स्थापना करें और वरुण देव का आह्वान करें। पुष्प चढ़ाकर कहना चाहिए- ‘हे विश्वकर्माजी, इस मूर्ति में विराजिए और मेरी पूजा स्वीकार कीजिए'। इस प्रकार पूजा करने के बाद औजारों और यंत्रों आदि की पूजा कर हवन यज्ञ करें।
भगवान शिव का अवतार भी माना जाता है। इनके 5 स्वरुपों और अवतारों का वर्णन प्राप्त होता है।
विराट विश्वकर्मा : सृष्टि के रचयिता
धर्मवंशी विश्वकर्मा : महान शिल्प विज्ञान विधाता प्रभात पुत्र
अंगिरावंशी विश्वकर्मा : आदि विज्ञान विधाता वसु पुत्र
सुधन्वा विश्वकर्मा : महान शिल्पाचार्य, विज्ञान जन्मदाता ऋषि अथवी के पौत्र
भृंगुवंशी विश्वकर्मा : उत्कृष्ट शिल्प विज्ञानाचार्य (शुक्राचार्य के पौत्र)
विश्वकर्मा भगवान की पूजा के दिन अगर कोई भी आपसे टूल्स, औजार या कोई उपकरण मांगने आए तो उसे टाल देना चाहिए। इससे आप अपने घर विश्वकर्मा जी को सम्मान देंगे। यह आपकी समृद्धि में भी सहायक होगा।
17 सितंबर दिन मंगलवार को पूरे देश में विश्वकर्मा जयंति मनाई जा रही है। संक्रांति का पुण्य काल सुबह 7 बजकर 2 मिनट से शुरु हो चुका है। सुबह 9 बजे से 10 बजकर 30 मिनट तक यमगंड रहेगा। उसके बाद 12 बजे से 1 बजकर 30 मिनट तक गुलिक काल है और शाम 3 बजे से 4 बजकर 30 मिनट तक राहुकाल रहेगा। ये अशुभ मुहूर्त माने जाते हैं। इन समयों को छोड़कर दिन में किसी भी समय विश्वकर्मा पूजा कर सकते हैं।
घर में जितने भी बिजली के उपकरण हैं या वाहन हैं उन सभी की इस अवसर पर अच्छे से सफाई करनी चाहिए। घर में अगर कल-पूर्जों वाले संसाधन हैं तो उनकी ऑयलिंग और ग्रीसिंग करें। ऐसे समझना चाहिए कि ऐसा करके आप विश्वकर्मा भगवान को स्नान और तिलक कर रहे हैं। इससे आपके उपकरण लंबे समय तक चलेंगे।
मान्यता है कि विश्वकर्मा जयंती के दिन औजारों की पूजा करते समय उनपर टीका जरूर करना चाहिए। ऐसा करने से भगवान विश्वकर्मा प्रसन्न होते हैं। टीका करने से तात्पर्य यह भी है कि आपने उनकी सुरक्षा का वादा किया है। इसलिए टीका लगाकर खुद से वचन लें कि आप अपने उपकरणों और औजारों की देखरेख करेंगे और उन्हें इधर-उधर रखकर उनका अपमान नहीं करेंगे।
विश्वकर्मा जयंती के मौके पर घरों और कार्यालय में इस्तेमाल होने वाले सभी औजारों और उपकरणों की पूजा की जानी चाहिए। पूजा का मतलब यह नहीं कि धूप-दीप, जल और फूल चढ़ाएं। इनकी साफ-सफाई और इनकी अच्छी देखरेख करें यह है असली विश्वकर्मा भगवान की पूजा।
पौराणिक मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा ने ही इस सृष्टि के हर तकनीकी चीजों का सृजन किया, इसलिए वे सभी उनके प्रिय हैं। ऐसे में सभी औजारों की पूजा और उनका टीका करना जरूरी माना गया है। भगवान विश्वकर्मा इस पूजा से प्रसन्न होते हैं। टीका करने का आशय इस चीज से है कि आपने उन उपकरणों की सुरक्षा का वादा और उसे सहेज के रखने का संकल्प किया। टीका लगाकर हम खुद से वचन लेते हैं कि अपने उपकरणों और औजारों की देखरेख करेंगे, उनका अपमान कतई नहीं करेंगे।
भगवान विश्वकर्मा को वैसे तो दुनिया का सबसे पहला इंजीनियर कहा जाता है। परंतु इनके बारे में पौराणिक विचार ये है कि इन्होंने इस सृष्टि का सृजन किया। इनके बारे में स्कंद पुराण के प्रभात खंड में कहा गया है कि विश्वकर्मा जी बृहस्पति की बहन भुवना के पुत्र हैं। भुवना महर्षि प्रभास की पत्नी थीं। पुराण में यह भी है कि भगवान विश्वकर्मा की मां भुवना सभी विधाओं में कुशल थीं और पत्नी का आकृति थी। इनके अलावा उनकी 3 पत्नियां थीं जिनका नाम था रति, प्राप्ति और नंदी। विश्वकर्मा के मनु चाक्षुष, शम, काम, हर्ष, विश्वरूप और वृत्रासुर नाम के 6 पुत्र हुए। इनके अलावा बहिर्श्मती और संज्ञा नाम की 2 पुत्रियां हुईं। कहा जाता है कि संज्ञा का विवाह सूर्यदेव से हुआ था। इसलिए भगवान सूर्य विश्वकर्मा के दामाद हैं।
इस वर्ष कन्या संक्रांति के दिन विश्वकर्मा पूजा का आयोजन हो रहा है। यह एक शुभ स्थिति है। संक्रांति का पुण्य काल सुबह 7 बजकर 2 मिनट से है। इस समय पूजा आरंभ की जा सकती है। सुबह 9 बजे से 10 बजकर 30 मिनट तक यमगंड रहेगा। 12 बजे से 1 बजकर 30 मिनट तक गुलिक काल है और शाम 3 बजे से 4 बजकर 30 मिनट तक राहुकाल रहेगा। इन समयों को छोड़कर दिन में कभी भी पूजा आरंभ कर सकते हैं।
पूजा के समय इन मंत्रों का करें उच्चारण: ।। ऊँ आधार शक्तपे नम: ।। ।। ऊँ कूमयि नम: ।। ।। ऊँ अनन्तम नम: ।। ।। ऊँ पृथिव्यै नम: ।। ।। ऊँ मंत्र का जप करे । जप के लिए रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करें।
मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा का जन्म भादो माह में हुआ था। हर साल 17 सितंबर को उनके जन्मदिवस को विश्वकर्मा जयंती के रूप में मनाया जाता है।
ऐसा मान्यता है कि विश्वकर्मा जयंती के दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा सभी लोगों को करनी चाहिए क्योंकि इस सृष्टि में जो भी सृजन और निर्माण हो रहा है, उसके मूल में भगवान विश्वकर्मा ही हैं। माना जाता है कि उनकी पूजा करने से बिगड़े काम बनने लगते हैं।
स्कंद पुराण के अंतर्गत विश्वकर्मा भगवान का परिचय ‘बृहस्पते भगिनी भुवना ब्रह्मवादिनी। प्रभासस्य तस्य भार्या बसूनामष्टमस्य च। विश्वकर्मा सुतस्तस्यशिल्पकर्ता प्रजापति' श्लोक के जरिए मिलता है। इस श्लोक का अर्थ है महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र बृहस्पति की बहन भुवना ब्रह्मविद्या की जानकार थीं। उनका विवाह आठवें वसु महर्षि प्रभास के साथ संपन्न हुआ था। विश्वकर्मा इन दोनों की ही संतान थे। विश्वकर्मा भगवान को सभी शिल्पकारों और रचनाकारों का भी ईष्ट देव माना जाता है
ऋगवेद में भगवान विश्वकर्मा के बारे में वर्णन किया गया है। स्वर्गलोक और सोने की लंका का किया निर्माण : भगवान विश्वकर्मा को देव शिल्पी कहा जाता है। उन्होंने सतयुग में स्वर्गलोक, त्रेतायुग में सोने की लंका, द्वापर में द्वारिका और कलियुग में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा की विशाल मूर्तियों का निर्माण करने के साथ ही यमपुरी, वरुणपुरी, पांडवपुरी, कुबेरपुरी, शिवमंडलपुरी तथा सुदामापुरी आदि का निर्माण किया।
इस दिन भगवान विश्वकर्मा की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। वैवाहिक जीवन वाले अपनी पत्नी के साथ इस पूजन को करें। हाथ में फूल, चावल लेकर भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करे। पूजा में दीप, धूप, फूल, गंध, सुपारी, रोली इत्यादि चीजों का प्रयोग करें। हाथ में पुष्प, अक्षत लेकर इस मंत्र का जाप करते हुए - ओम आधार शक्तपे नम: और ओम् कूमयि नम:; ओम् अनन्तम नम:, पृथिव्यै नम: चारो ओर अक्षत छिड़के और पीली सरसों लेकर चारो दिशाओं को बंद कर दे। दीप जलाये, जल के साथ पुष्प एवं सुपारी लेकर संकल्प करे। शुद्ध भूमि पर अष्टदल कमल बनाकर उस स्थान पर सप्त धान्य रखें और उस पर मिट्टी और तांबे से जल डालें। इसके बाद पंचपल्लव, सप्त मृन्तिका, सुपारी, दक्षिणा कलश में डालकर कपड़े से कलश का आच्छादन करे। अब चावल से भरा पात्र समर्पित कर ऊपर विश्वकर्मा भगवान की मूर्ति स्थापित करें और वरुण देव का आह्वान करें। भगवान विश्वकर्मा को पुष्प अर्पित करें और प्रार्थना करें कि – ‘हे विश्वकर्मा जी, इस मूर्ति में विराजिए और मेरी पूजा स्वीकार कीजिए। इस प्रकार पूजन के बाद विविध प्रकार के औजारों और यंत्रों आदि की पूजा कर हवन यज्ञ करना होता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्राचीन काल की सभी राजधानियों का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया था। जिनमें स्वर्ग लोक, रावण कि लंका, द्वारिका और हस्तिनापुर भी विश्वकर्मा द्वारा ही रचित हैं। यहां तक कि स्वर्ग के राजा इंद्र का अस्त्र वज्र, उड़ीसा में भगवान जगन्नाथ का मंदिर, भगवान श्रीकृष्ण के आदेश पर द्वारका नगरी का निर्माण, कर्ण का कुण्डल, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र, शंकर भगवान का त्रिशूल और यमराज का कालदण्ड भी इनके द्वारा भी निर्मित किया गया माना जाता है।
ॐ जय श्री विश्वकर्मा प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।
सकल सृष्टि के कर्ता रक्षक श्रुति धर्मा ॥1॥
आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया।
शिल्प शस्त्र का जग में, ज्ञान विकास किया ॥2॥
ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नही पाई।
ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई॥3॥
रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना।
संकट मोचन बनकर, दूर दुख कीना॥4॥
जब रथकार दम्पती, तुमरी टेर करी।
सुनकर दीन प्रार्थना, विपत्ति हरी सगरी॥5॥
एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।
द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज, सकल रूप साजे॥6॥
ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे।
मन दुविधा मिट जावे, अटल शांति पावे॥7॥
श्री विश्वकर्मा जी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत गजानन स्वामी, सुख सम्पत्ति पावे॥8॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा ।
सकल सृष्टि के करता, रक्षक स्तुति धर्मा॥
विश्वकर्मा पूजा को लेकर कारीगरों की मान्यता है कि इनकी पूजा करने से काम में प्रयोग किये जाने वाली मशीनें जल्दी खराब नहीं होती और अच्छे से काम करती हैं। इसलिए इस दिन सभी काम रोककर मशीनों और औजारों की साफ-सफाई की जाती है और भगवान विश्वकर्मा की पूरी श्रद्धा के साथ पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्राचीन काल की सभी राजधानियों का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया था। जिनमें स्वर्ग लोक, रावण कि लंका, द्वारिका और हस्तिनापुर भी विश्वकर्मा द्वारा ही रचित हैं।
पूजा के लिए सबसे पहले साबुत चावल, फूल, मिठाई, कुछ फल, रोली, सुपारी, धूप, दीपक, रक्षा सूत्र, पटरा, दही और भगवान विश्वकर्मा की तस्वीर इत्यादी जरूरी चीजों की पहले से ही व्यवस्था कर लें। इसके बाद अष्टदल की बनी रंगोली पर सतनजा बनाएं। उसके बाद विश्वकर्मा भगवान की प्रतिमा पर फूल चढ़ाकर कहें- हे विश्वकर्मा जी आइए, मेरी पूजा स्वीकार कीजिए। इसके बाद अपने काम से जुड़े सभी मौजूद औजारों पर तिलक और अक्षत लगाकर फूल चढ़ाएं और सतनजा पर कलश रख दें। इसके बाद कलश को रोली-अक्षत लगाएं फिर दोनो को हाथ में लेकर ओम पृथिव्यै नमः ओम अनंतम नमः ओम कूमयि नमः ओम श्री सृष्टतनया सर्वसिद्धया विश्वकर्माया नमो नमः का मंत्र पढ़कर अपनी सभी मशीनों, विश्वकर्मा जी की फोटो और कलश पर चारों तरफ छिड़क दें, साथ ही फूल भी चढ़ाएं। इसके बाद भगवान को मिठाई का भोग खिलाएं। जहां भी आप पूजा कर रहे हों तो अपने कर्मचारियों और दोस्तों के साथ भगवान विश्वकर्मा की आरती करें और प्रसाद बांट दें।